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Sunday, December 30, 2012

Andaze Qatal...


Wo Zahar Dekar Marte...
to Qatal ka Ilzam Lagta...

Andaze Qatal to Dekho...!
Muhabbat karke Chhod Diya...!

Thursday, September 8, 2011

तुझे ख़ामोशी ही अख्तियार करनी होगी ऐ जमां...


वो गुनाह करते गए अपनी आजाद ख्याली में... 
गुनाहों को जायज़ कहते गए दोस्ती की आड़ में...

हर जुर्म को बस यू कहा की ये तो सिर्फ दिल्लगी थी...
खूने जिगर भी करते गए दिल्लगी की आड़ में...

खूने जिगर पर  भी दर्दे  दिल को चीखने न दिया...
रास न आया उन्हें दिल के जज़्बात का ज़ाहिर करना...

तुझे ख़ामोशी ही अख्तियार करनी होगी ऐ जमां...
वरना आह भरने के जुर्म में फिर सजा होगी...

Tuesday, October 28, 2008

मुझे सताने के सलीके तो उन्हें बेहिसाब आते हैं

कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं
मुझे सताने के सलीके तो उन्हें बेहिसाब आते हैं

कयामत देखनी हो गर चले जाना उस महफिल में
सुना है उस महफिल में वो बेनकाब आते हैं

कई सदियों में आती है कोई सूरत हसीं इतनी
हुस्न पर हर रोज कहां ऐसे श़बाब आते हैं

रौशनी के वास्ते तो उनका नूर ही काफी है
उनके दीदार को आफ़ताब और माहताब आते !!!!!!